भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात / मंगलेश डबराल

Kavita Kosh से
Lina niaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 18:11, 11 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} रचनाकार: मंगलेश डबराल Category:कविताएँ Category:मंगलेश डबराल ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: मंगलेश डबराल

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


बहुत देर हो गई थी

घर जाने का कोई रास्ता नहीं बचा

तब एक दोस्त आया

मेरे साथ मुझे छोड़ने


अथाह रात थी

जिसकी कई परतें हमने पार कीं

हम एक बाढ़ में डूबने

एक आँधी में उड़ने से बचे

हमने एक बहुत पुरानी चीख़ सुनी

बन्दूकें देखीं जो हमेशा

तैयार रहती हैं

किसी ने हमें जगह जगह रोका

चेतावनी देते हुए

हमने देखे आधे पागल और भिखारी

तारों की ओर टकटकी बाँधे हुए


मैंने कहा दोस्त मुझे थामो

बचाओ गिरने से

तेज़ी से ले चलो

लोहे और ख़ून की नदी के पार


सुबह मैं उठा

मैंने सुनी दोस्त की आवाज़

और ली एक गहरी साँस ।


(1989)