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द्रौपदी और दुर्योधन / उपेन्द्र कुमार

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फिर एक बार
घूम रही है द्रौपदी
इन्द्रप्रस्थ के
नये भव्य प्रासादों में

चढ़ती है सीढ़ियाँ
नहीं पहुँच पाती कहीं
उतरती है सीढ़ियाँ
नहीं पहुँच पाती कहीं

बन्द है गवाक्ष
बाहर का कुछ नहीं दीखता
द्रौपदी खोलती है गवाक्ष
नहीं दीखता भीतर का भी कुछ

न कहीं जाती है
न कहीं आती है द्रौपदी
बस तेज़-तेज़ चलती है
जाने किधर से किधर

तेज़-तेज़ चलती
द्रौपदी
गिर पड़ती है
महल के
उसी पोखर में
जहाँ कभी गिरा था दुर्योधन
पूरी तरह
उस पानी से कभी
नहीं निकल पाती है
दुर्योधन की ही तरह
द्रौपदी