भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ अशआर / राहत इन्दौरी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:13, 16 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहत इन्दौरी }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> '''1''' अपनी पहचान मिटाने …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1
अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है
बस्तियाँ छोड़ के जाने को कहा जाता है

पत्तियाँ रोज़ गिरा जाती है ज़हरीली हवा
और हमें पेड़ लगाने को कहा जाता है

2
नए सफर का नया इंतज़ाम कह देंगे
हवा को धूप चरागों को शाम कह देंगे

किसी से हाथ भी छुपकर मिलाइए वर्ना
इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे

3
सूरज सितारे चाँद मेरे साथ मेँ रहे
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहे

शाख़ों से टूट जायें वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे