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कविता.. / कन्हैया लाल सेठिया
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लुक्योड़ा है
रूंख रै
रूखै करूप कठोर तणैं में
अणगिनत कंवळा पानड़ा
फूठरा फूल, मीठा फळ
पण बै आसी बारै
जद बुलासी
रूत रो बायरो
बिंयां ही
काढयां
सबदां रो घूंघटियो
बैठी अडीकै
कोई दीठवान नै
अनन्त अरथां री घिराणी
लजवन्ती कविता !