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ओ स्वदेश / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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ओ स्वदेश
(राष्ट्रीयता की भावना का प्रदर्शन)
उठो उठो ओ स्वदेश!
ओ स्वदेश उठो उठो।
हुआ कभी का प्रभात
खुली सभी ओर रात
देख रहा राह कर्म
यत्न करो उठो जुटो
छोटा जो आज पड़ा होगा
क्कल वही बड़ा होगा
क्या है जग में असाध्य
साहस यदि क्षीण न हो
साहस के शब्द कहो
वीर वेश उठो उठो
लाती है कीर्ति नयी
अर्जित कर शक्ति नयी
उठो उठो ओ स्वदेश उठो उठो।
(ओ स्वदेश कविता का अंश)