भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
होली / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:49, 15 मार्च 2011 का अवतरण
यह मिट्टी की चतुराई है,
रूप अलग औ’ रंग अलग,
भाव, विचार, तरंग अलग हैं,
ढाल अलग है ढंग अलग,
आजादी है जिसको चाहो आज उसे वर लो।
होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर को!
निकट हुए तो बनो निकटतर
और निकटतम भी जाओ,
रूढ़ि-रीति के और नीति के
शासन से मत घबराओ,
आज नहीं बरजेगा कोई, मनचाही कर लो।
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो!
प्रेम चिरंतन मूल जगत का,
वैर-घृणा भूलें क्षण की,
भूल-चूक लेनी-देनी में
सदा सफलता जीवन की,
जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो।
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!
होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो,
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो,
भूल शूल से भरे वर्ष के वैर-विरोधों को,
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!