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कौड़ी-कौड़ी माया / शतदल
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कौड़ी-कौड़ी माया जोड़ी ।
बादल देख गगरिया छोड़ी ।।
सागर की चादर तानी थी,
चादर जो पानी-पानी थी ।
चादर ने ही समझाया फिर,
बेमतलब है भागा-दौड़ी ।।
अधरों-अधरों खेल-तमाशे,
पानी आगे पीछे प्यासे ।
साँसों की जंजीर हवा की,
आखिर इक दिन सबने तोड़ी ।।
झूठे-सच्चे सपन दिखाए,
कठपुतली-सा नाच नचाए ।
उम्र मिली थी कितनी थोड़ी-
वह भी रही न साथ निगोड़ी ।।
जितनी भी जिनगानी पाई,
हँसते-रोते खेल-बिताई ।
उसका नाच नाच दुनिया में,
जिसने तुझ से डोरी जोड़ी ।।
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