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अपनी ख़ुशी / पूर्णिमा वर्मन

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अपनी ख़ुशी के आयाम ढूँढते हैं

हम फुर्सतों के मारे कुछ काम ढूँढते हैं


बैठेंगे शांत कब तक अब धैर्य चुक गया है

हम किश्तियों के मालिक तूफ़ान ढूँढ्ते हैं


एक शोहरते बुलंदी जो अपनी हमसफ़र थी

हम देके इश्तहार-ए-ईनाम ढूँढते हैं


किस वर्क पे लिखा था एक नाम था हमारा

पन्ने पलट-पलट के वो नाम ढूँढते हैं


दर खटखटा रहा है बादे सबा हमारा

हम द्वार बन्द करके दीदार ढूँढते हैं


बाँसों के झुरमुटों में दिन गुनगुना रहा है

हम धूप सेंकते हैं और छाँह ढूँढते हैं