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मृत्यु / लीलाधर मंडलोई
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आज सुनी मृत्यु की खबर 
और दहल गया 
हालांकि यह मृत्यु थी मां की 
हरि की मां 
और जब यह फोन आया 
मैं मां के पास था 
मैंने मां को देखा 
वह सो रही थी 
मैंने हमेशा की तरह रजाई में दुबकी 
उसकी सांसों का चलना देखा 
उसका माथा छुआ 
वह ठण्ड में डूबा था 
लेकिन सांसें चल रही थीं 
इसमें आश्वस्त होने के बाद भी एक भय था 
मैं अपनी मां को देख रहा था 
कि जैसे उस मां को जिसकी अभी-अभी खबर मैंने सुनी 
और भीतर तक दहल गया 
एक मां के न होने से कितनी सूनी हो गई दुनिया 
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