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पहचान / मीना अग्रवाल
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अंदर-अंदर टूटन
अंतर में घुटन
और मुख पर मुस्कान,
खुशियाँ लुटाना
आदत-सी बन गई है! इसी आशा में,
इसी प्रत्याशा में कि शायद
वो एक दिन आएगा ज़रूर आएगा, जो नारी को
उसके अस्तित्व की पहचान कराएगा,
आदर दिलाएगा उसके अंतर की पीड़ा से
समाज तिलमिलाएगा !
और तथाकथित समाज के
योग्य और सहृदय जन
एक दिन महसूस करेंगे
उसकी छटपटाहट को,
देंगे नारी को उसकी पहचान,
देंगे उसे सम्मान
और जीने का अधिकार,
क्योंकि नारी
टूटकर भी
सदैव रही है संपूर्ण !
पक्का भरोसा है उसे कि एक दिन आएगा,
ज़रूर आएगा
जब खोया हुआ अतीत
होगा उजागर !
इंतज़ार है उसे
उस दिन का
जो उसे न्याय दिलाएगा
देखते हैं, कब आएगा
वह भाग्यशाली एक दिन !