भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाने क्यों / नेमिचन्द्र जैन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:00, 21 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नेमिचन्द्र जैन }} जाने क्यों, प्रिय, जी भर कर बातें हो न...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जाने क्यों, प्रिय,

जी भर कर बातें हो न सकीं

बढ़ गया दर्द इतना ये आँखें रो न सकीं

बहुतेरा ही दुलराया-बहलाया मन को

पर जगी हुई काली छायाएँ सो न सकीं ।


(1945 में बनारस में रचित)