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सप्ताह की कविता | शीर्षक : घर से भागी हुई लड़की रचनाकार: महेश चंद्र पुनेठा |
परीक्षा में फ़ेल हो जाने पर या माँ-बाप से लड़कर घर से भाग जाता है लड़का दुख व्यक्त करते हैं लोग लड़का कहीं कर लेता है दो रोटी का जुगाड़ या फिर कुछ दिन घूम-फिरकर लौट आता है अपने घर ख़ुशियों से भर जाता है घर जैसे लम्बे सूखे के बाद वर्षा की बूँदों का झरना पतझड़ के बाद बसंत का आ जाना । सौतेली माँ के उत्पीड़न से या शराबी बाप के आतंक से घर से भाग जाती है लड़की कभी गाँव भर में शुरू हो जाता है चर्चाओं का उफ़ान आँगन हो / गली हो / पनघट हो या चाय की दुकान आ ही जाती है उसके भागने की बात तरह-तरह की आकाँक्षाएँ संबंधों की बातें जितने मुँह उतने अफ़साने दो-चार दिन में लौट आती है लड़की घर में बढ़ जाता है तनाव कहीं कोई ख़ुशी नहीं मर क्यों नहीं गई मर ही जाती क्यों लौट आई यह लड़की ।