भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरा घर / नरेश मेहन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:42, 8 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश मेहन |संग्रह=पेड़ का दुख / नरेश मेहन }} {{KKCatKavita}} <…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर होता है
प्रकृति का खजाना
जहां
धूप होती है
छांव होती है
सभी को
आसरा देने की
आस होती है
जहां चिड़िया
तिनका-तिनका लाकर
घोंसला बनाती है
चींटिया आती है पंक्तिबद्व
भंवरे गुनगनाते हैं
मक्खियां भिन्न-भिन्नाती है
कॉकरोच अपनी लम्बी मूंछो से
कोनो की टोह लेते हैं
मकड़ियों बुनती रहती है जाले
अनाज की बोरी के पीछे से
झांकती चुहिया
छुप जाती है
उसी के पीछे
जरा सी आहट सुनकर
और दबे पांव आकर
बिल्ली पी जाती है
बच्चों के लिए रखा दूध
वह केवल डरती है
कुत्ते से
जो बैठा रहता है
घर के दरवाजे पर
आगन्तुकों को पहचाने के लिए
मेरा घर
बहुत सलौना है
एकदम प्रकृति की तरह