भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बदलाव / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:47, 8 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=नए घर में प्रवेश / नरेश अग्…)
अब किसी कम्पन को
उतारता नहीं हूँ अपने शरीर पर
जैसे टहनी की तरह धैर्य से भरा हुआ
अच्छी लगती हैं किताबें
इन्होंने मुझे वापस बुला लिया
पूरी एकग्रता से करता हूँ इनका अध्ययन
जैसे इन्होंने मुझे पूरा बाँध लिया अपने में
अच्छे-बुरे सारे अनुभव इनमें छिपे हैं
सभी पात्र खेलते हुए
मेरे मन की जमीन पर
और इस जिन्दगी के नाटक को
कभी बाहर से देखता हूँ, कभी भीतर से
इसी तरह से गुजर जाता है समय
अब किसी का इंतजार नहीं करता हूँ मैं ।