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आज अचानक / नरेश अग्रवाल
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अचानक तुम्हारी याद आने लगी
तुम्हारी कोमल हथेली को
फिर से पकड़ लिया मैंने
बढ़ने लगा एक सुखद यात्रा की ओर
सारे धूल-कुहासे से ऊपर
तैरने लगा मैं
एक मधु से भरी नदी में
जिसके चारों ओर
रूई जैसे पहाड़ थे
और ओस टपक रही थी
ऊपर कोई रोक-टोक नहीं थी
न ही किसी से भय।