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चढ़ते-चढ़ते / नरेश अग्रवाल
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हम ऊपर चढ़ते-चढ़ते थक गए थे
गाइड वैसा का वैसा ही
अभी थोड़ी दूर और चलें तो
खूबसूरती इससे कहीं अधिक
और फिर से जुटाते हैं हिम्मत और ताजगी
बढ़ते हैं उस ऊँची जगह की ओर
रखते हुए पाँव एक-एक पत्थर पर
बस यह अन्तिम छोर इस पहाड़ का
यहाँ से नीचे गहरी खाई दूर तक
जिसके बीचोंबीच पतली सी नदी बहती हुई
इस ओर चारों तरफ हरियाली है
बर्फ काफी दूर है अभी भी दूसरे पहाड़ों पर।
पक्षियों का एक सघन झुंड आया
और सर के ऊपर से उड़ गया
अब धीरे-धीरे सूर्य भी अस्त होने लगा है
चारों तरफ के पहाड़ रंग गए हैं सुनहरे रंग में
एक दीपक और उसका उजाला
सभी धीरे-धीरे अंधेरे में सिमटते हुए
और हमें जल्दी ही वापस लौटना है अपने स्थान पर।