भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तूफ़ान / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:45, 9 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=चित्रकार / नरेश अग्रवाल }} {{…)
यह कितनी साधारण सी बात है
रात में तूफान आये होंगे तो उजड़ गए होंगे घर
सुबह जागता हूं तो
लगता है कितनी छोटी रही नींद
धूप के साथ माथे पर पसीना
पेड़ गिर गए, टूट गए कितने ही गमले,
मिट्टी बिखर गयी इतनी सारी
और सभी चीजें कहती हैं हमें वापस सजाओ
पूरी करो नींद हमारी भी,
सुना है छोटे मकानों को सजाना आसान होता है
बकरियां पाल लो तो कहीं भी चरती रहेंगी
लेकिन दूध तो अपना ही होगा
थोड़ा सा बोझ उठाओ कि हाथ में दर्द न हो
इतना कम पकाओ कि आग सुरक्षित रहे
और मैं तुम्हारे आने से पहले जाग पड़ता हूं
कि जानता हूं खुशियों,
तुम्हें मेरा स्वागत करना कितना अच्छा लगता है।