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संभावना / माया मृग

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सत्ता की सीढ़ियों पर
सदियों से औंधा सिर किए,
माथा नवाये,
टका दो टका ज़िंदगी मांगते
बिन मांगी मौत जी रहे हो साथी !
मदमस्त हाथी,
क्षण प्रतिक्षण आते जा रहे हैं,
तुम्हारे करीबतर !
बंद आँखों में बसी,
बासी सपनों की टूटी तस्वीरें
खूंटी से उतरा कर,
एक पल को
तिनका भर सिर उठाकर
आँखें खोल दो।
हाथी के पाँव के तलवों पर
शायद
तुम्हारी मौत नहीं
जिंदगी की इबारत लिखी हो !
शायद इसी इबारत को पढ़कर
तुममें जीने की चाह जाग जाये,
शायद तुम्हारी मौत
हाथी के पाँवों तले
कुचलकर नहीं,
हाथी से लड़ते हुए होनी हो
या कि इस लड़ाई में
हाथी को ही हार जाना हो !
या कि शायद
इसी हाथी पर बैठकर
तुम्हें सत्ता की सीढ़ियों पर
चढ़ जाना हो,
शायद-शायद ही सही,
तुम एक बार
एक पल को ही सही
संभावना में सिर तो उठाओ।