भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बलात्कार / भगवत रावत
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:57, 29 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भगवत रावत |संग्रह=दी हुई दुनिया / भगवत रावत }} अपनी पूरी ...)
अपनी पूरी ताक़त के साथ
चीख़ती है
एक औरत
अपने बियाबान में
और
ख़ामोश हो जाती है
कहीं दूर
एक पत्ता टूट कर गिरत है
सन्नाटे को चीरता
छटपटा कर गिरता है
कहीं एक पक्षी
और दूर-दूर तक
ख़ामोशी छाई रहती है
यह मेरा समय है
और यह मेरी दुनिया है ।