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गाय / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
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भोला ने उसका पगहा खोल लिया था
पर वह जाने को तैयार नहीं थी
उसने कई बार सिर हिलाया
सींग झाँटा
और अंत में हारकर धीरे-धीरे चलने लगी
दस वर्ष पूर्व वह इस खूँटे पर आई थी
यहीं वह चार बार ब्याई थी
उसके लड़के अब हल खींच रहे थे
उसकी लड़की माँ बन चुकी थी
उस दिन सब वहीं थे
जब वह बेची गई
वे उस आदमी की भाषा नहीं समझते थे
जो उन्हें ख़रीदता है
बाँधता है
दूहता है
और खूँटे से कसाईख़ाने तक
सुरक्षित पहुँचा देता है
वे कुछ कहना चाहते थे
पर उनके भाषा न थी
वे अपने-अपने नाद से मुँह उठाकर देख रहे थे
भोला उसे खींचे जा रहा था ।