भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शृंगार / आलोक धन्वा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:17, 25 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलोक धन्वा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> तुम भीगी रेत पर इस …)
तुम भीगी रेत पर
इस तरह चलती हो
अपनी पिंडलियों से ऊपर
साड़ी उठाकर
जैसे पानी में चल रही हो !
क्या तुम जान-बूझ कर ऐसा
कर रही हो
क्या तुम शृंगार को
फिर से बसाना चाहती हो?