ममता / रणजीत
पहली बार मैंने तुम्हें पाया था
आनन्द के आँचल में मुस्कुराते हुए
और मैं न्यौछावर हो गया था
किस तरह मेरे सीने से आकर
लिपट जाती थीं तुम !
पर तुम्हारी तुतली जबान
पूरी तरह खुलने से पहले ही बन्द हो गई
हमेशा के लिए
और मेरे रैन-बसेरे के कच्चे आँगन में
फड़फड़ाते रहे कई दिन तक
तुम्हारी किलकारियों के केंचुल ।
दूसरी बार मैंने बोया तुम्हें एक अनिच्छुक ज़मीन में
सात साल की जुताई और सिंचाई के बाद
अपना जला हुआ ख़ून देकर
पाला तुम्हें आठ साल तक ।
नन्हीं मुन्नी ठंडी हवा से
तुम चौथी क्लास में पढ़ने वाली मेरी पहिचान बन गई
तभी अचानक लील लिया तुम्हें
उसी कृतघ्न कंकरीली ज़मीन ने
और मुझे सचमुच सर्वहारा बना दिया ।
लेकिन मैंने फिर हिम्मत बटोरी है
मैं तुम्हें फिर आकार दूँगा, मेरी ममता
फिर बोऊँगा तुम्हें
तुम्हारे बीज के लिए बेताब
लम्बी प्रतीक्षा से थकी-हारी
एक स्निग्ध सजल क्यारी में ।
फटी-झुलसी छाल वाली नंगी बांहें फैलाए
गुमसुम खड़े ठूँठ पर
सावन के आशीर्वाद-सी उतरने वाली
नन्हीं मुन्नी हरियाली !
मैं तुम्हारे लिए कोई अच्छा-सा नाम खोज रहा हूं
सीमा, नसीम, अस्मिता के बाद तुम्हारा अगला नाम !
दो बार तुम मुझे धोखा दे चुकी हो
ईश्वर के लिए तीसरी बार न देना !