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आँखें / पूनम तुषामड़

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सामने खूँटे से बंधी गाय
गाय की काली-काली,
बड़ी-बड़ी आँखें
कितनी सुंदर

पर यह क्या?
गाय की आँख में आँसू।
क्या...गाय भी रो रही है?

शायद ....हाँ
क्या किसी ने इसे मारा है?
इसके मालिक ने...?

इसकी देह पर भी निशान है
चोट के।

वह सोच रही है
शायद दूध का विरोध
सींग मारती होगी।

तभी अश्क भरी आँखों से
उसने ख़ुद को निहारा
अपनी देह के ज़ख़्मों को
नज़र में उतारा
एक धीमी-सी सिसकी...

उसने फिर गाय को निहारा
गाय की आँख में आँसू तो हैं
पर वह बेचैन है,
क्रोधित है ।

यह क्या?
वह जोर-जोर से रंभा रही है...
खूँटे से रस्सी तोड़ने को
उछल कूद मचा रही है ।

अरे-अरे ....यह क्या?
गाय खूँटा तोड़ गई है ।
वह भाग रही है...।
वह भाग गई है...।

तभी....।
ठक-ठक....।
अरे डाकिया बाबू?
जल्दी से पल्लू से मुँह पोंछती है

डाकिया, हिचकिचाकर
बिटिया! चेहरे पर ये घाव?

कुछ नहीं काका
कल आँगन में फिसल गया था पाँव
चिट्ठी पकड़ती है
चुन्नी से खुद को ढाँपती है
काँपती है ।

और फिर क़ैद हो जाती है
बंधन तोड़ने को नहीं
जोड़ने को ।