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वह लड़की / भारत यायावर

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पूरी रात जागकर

मैं जिसके सपने देखता था

जिसके पास होने को हर वक्त महसूस करता था

जिसकी एक हल्की मुसकान मेरे भीतर हलचल पैदा कर देती थी

जिसे दूर से बस देखता था और कहता कभी कुछ नहीं था

यह उस समय की बात है जिसे बीस वर्ष बीत गए

आज वह लड़की अपने दो बच्चों के साथ दिखी

वह मुझे पहचानती नहीं थी

फिर भी मैंने पहचाना

और पुरानी स्मृतियों को याद कर मुस्कराया

आज न वे बातें हैं

न वे नींद जागी राते हैं

न वे सपने हैं, न वे भाव हैं

और दो बच्चों के साथ वह लड़की

वह लड़की नहीं एक ढली हुई औरत है

जिसे पास पाकर कुछ भी नहीं होता

न दर्द, न टीस

न चाहत, न उद्वेग

आज वह सिर्फ़ एक औरत है

चलती-फिरती अनेक दृश्यों के बीच


(रचनाकाल:1994)