मेरठ-4 / स्वप्निल श्रीवास्तव
यहीं कैण्ट थाने के पास
रहती थीं भाभी
वे दंगे के बाद इस शहर में
आई थीं
अब यहाँ दंगा हो गया है
वे कहाँ जाएंगी
हर शहर में हो रहे हैं दंगे
भैय्या दंगे में बिछुड़ गए थे
वे अभी तक नहीं लौटे
भाभी को रोज़ स्वप्न आते हैं
वे रोज़ पोस्टमैन की राह
देखती हैं
अभी तक भैय्या की वापसी का
तार नहीं मिला
भाभी के बच्चे बड़े हो रहे हैं
वे पूछते हैं दंगों का इतिहास
भाभी के चेहरे पर तुरन्त
कर्फ़्यू छा जाता है
लोग कहते हैं भैय्या
ज़रूर लौटेंगे
जैसे शहर में अमन-चैन लौटेगा
ख़ुशियाँ लौटेंगी
सब्ज़ी-बाज़ार में सब्ज़ियाँ
अनाज़-मण्डी में अन्न
बच्चों के चेहरे पर मुस्कान
लौटेगी
ट्रेन से उतरते भैय्या
बच्चों की तरह चिल्लाएंगे
मेरठ मेरठ मेरठ
और घर में बैठी भाभी को
लगेगा
भैय्या वापस लौट आए हैं