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उदास रात / अरुण शीतांश

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दादी की लोरी
सरसों के फूल की तरह होती थी
आज की रात
हां, आज की रात
कौन सुनाएगा लोरी
कि सो सकूं

यह रात
नगर की रात है
होटल की रात है
दादी की गोद नहीं
बरसात का मौसम है
पांव में पंक नहीं लगे हैं
इसलिए जूते में लगे
मिट्टी की सुगंध से
आधी रात
खुश रहा
और आधी रात उदास आंख खोल सोता रहा
याद आती रही
गांव के पूरब में
केवाल मिट्टी
पश्चिम में बलुआही
उत्तर में ललकी
और दक्षिण में सब की सब मिट्टियां
और हर मिट्टी के लोंदों से बनी
मेरी दादी....।