भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सवाल / चेतन स्वामी
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:13, 8 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चेतन स्वामी |संग्रह= }} {{KKCatMoolRajasthani}} {{KKCatKavita}}<poem>आवो ! …)
आवो ! थांरै खातर
ढळावां हिंगळूं ढोलिया
रंगावां मैंमद मोळिया
किण केयो कोई बात हुई
थे केवो दिन- तो दिन
नींतर रात हुई
थे देव !
म्हैं किरोड़ूं-किरोड़ देवळियां
थांरो प्रजातंतर
म्हां कनै न डोरो
न डांडो न जंतर
थां माथै क्यां सूं चलावां मूठ
म्हैं मूढ़
थारां करतब कोर्स में पढ़ावां
टाबरां नै दसवीं-ग्यारवीं करावां
रोटी जैड़ी नाजोगी चीज खातर
रोवां, धिक्कार म्हांनै
पण देवतावां थानै
कद पूछसी थांरी आतमावां सवाल
कै म्हांरा कुण करिया ए हैवाल