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वो/ सजीव सारथी

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समय की पृष्ठभूमि पर,
बदलते रहे चित्र,
कुछ चेहरे बने,
कुछ बुझ गए,
कुछ कदम साथ चले,
कुछ खो गए,
पर वो,
उसकी खुश्बू रही साथ सदा,
उसका साया साथ चला मेरे,
हमेशा...

टूटा कभी जब हौंसला,
और छूटे सारे सहारे,
उन थके से लम्हों में,
डूबी डूबी तन्हाईयों में,
वो पास आकर,
जख्मों को सहलाता रहा,
उसके कन्धों पर रखता हूँ सर,
तो बहने लगता है सारा गुबार,
आँखों से...

वो समेट लेता है मेरे सारे आँसू,
अपने दामन में,
फिर प्यार से काँधे पर रखकर हाथ,
कहता है – अभी हारना नहीं,
अभी हारना नहीं....

मगर उसकी उन नूर भरी,
चमकती,
मुस्कुराती,
आँखों में,
मैं देख लेता हूँ,
अपने दर्द का एक,
झिलमिलाता सा कतरा....