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गम रहा जब तक कि दम में दम रहा / मीर तक़ी 'मीर'
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गम रहा जब तक कि दम में दम रहा
दिल के जाने का निहायत गम रहा
हुस्न था तेरा बहुत आलम फरेब
खत के आने पर भी इक आलम रहा
मेरे रोने की हकीकत जिस में थी
एक मुद्दत तक वो कागज नम रहा
जामा-ऐ-एहराम-ऐ-ज़ाहिद पर न जा
था हरम में लेकिन ना-महरम रहा