भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बहे नदी / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:42, 26 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह=उड़न खटोले आ / रमेश तैलंग }} {{KKCat…)
पर्वत से चल बहे नदी ।
कल-कल कल-कल बहे नदी ।
जंगल-जंगल बहे नदी ।
छल-छल छल-छल बहे नदी ।
घाट से बँध कर बहे नदी ।
काट के पत्थर बहे नदी ।
गुस्से में भर बहे नदी ।
उफ़न-उफ़न कर बहे नदी ।
मीलों चल कर बहे नदी ।
दूर समंदर बहे नदी ।