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सोहबत / मुत्तुलक्ष्मी
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प्रकाश को ऊपर से रोक
ध्वनियों को संजोए रखे
वन के वादे पर भरोसा करके
घोसला बनाया मैं ने |
कभी कभार लग जाती
जंगली आग को
स्वयं वन
घनघोर बारिश की मदद से
बुझाकर
अमय देता |
अँधेरे के संग
नीरवता व्याप्त रही
ऐसे अमन चैन के माहौल में
खुद अपनी धार को परखती
छैनी की आवाज के साथ
लालच
जंगल के बाहर
खीचता रहता है ध्यान |
अनुवाद डॉ. एच. बालसुब्रहमण्यम