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ईश्वर / पद्मजा शर्मा

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पाँव देता है पेट के लिए
अंत समय तक घिसते रहो
हाथ देता है कि टूटने तक
जीवन का बोझ उठाते रहो
आँखें देता है कि झुकाकर
चुपचाप रोते रहो
दिल देता है कि
चोट पर चोट खाकर
घावों के साथ भी
हरदम मुस्कराते रहो
असल में वह किस्मत लिखकर
भूल जाता है
और स्याही होती है अमिट
वह ख़ुद भी मिटा नहीं सकता
चाहकर भी किसी रोते को
हँसा नहीं सकता
ईश्वर।