भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्यों कभी / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:03, 28 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=केवल एक प...' के साथ नया पन्ना बनाया)
क्याक रे वह
जो कभी लू है
कभी बर्फ़ानी
आँध कभी
शीतल कभी समीर—
हवा का कुछ नहीं
अपना
मौसम हो कर वह
जैसे छूटी है मुझ को
मुझ में हो कर
क्यों कभी
मौसम नहीं होती वह ?
—
4 जून, 2009