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काश्मीर / रामनरेश त्रिपाठी

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(१)
स्वर्ग से बड़ी है काश्मीर की बड़ाई जहाँ
वास करती है बहू वेश धरके रमा।
सरिता, पहाड़, झील झरनों बनों में जहाँ,
इंद्रपुर से भी है हजार गुनी सुषमा॥
घास छीलती हैं जहाँ अप्सरा अनेक
खड़ी धान कूटती हैं परी किन्नरी मनोरमा।
सड़कें बुहारती घृताची रति रंभा जहाँ
गोबर बटोरती हैं मेनका तिलोत्तमा॥
(२)
मूत्र भरी गलियाँ, पुरीष-भरे घर-द्वार
गंदी हवा, वादी जल, देश उजबक है।
लोग बड़े झूठे, महा मलिन लुगाइयाँ हैं
सौ में जहाँ नब्बे को सुजाक आतशक है॥
खाने को करम माँस मछली पनीर भात
काँगड़ी का कंठ-हार आठ मास तक है।
काशमीर देखा, सब बूझ लिया लेखा
यदि स्वर्ग है यहीं तो फिर कौन-सा नरक है॥