भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माँग लूँगा / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:20, 9 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर सक्सेना |संग्रह=रात जब चन्द...' के साथ नया पन्ना बनाया)
उड़ा चला जा रहा हूँ
वेगवती हवाएँ
उड़ाए लिए जा रही हैं मुझे
महाद्वीपों के आर-पार
न जाने कहाँ गिरूँगा मैं,
न जाने कहाँ ?
जहाँ भी गिरूँ मैं
दे देना मुझे थोड़ी-सी मिट्टी,
थोड़ा-सा पानी
वहीं सूरज से माँग लूँगा मैं
अपने हिस्से की मुट्ठी भर धूप