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बीड़ी / प्रमोद कुमार शर्मा
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तेंदू पत्ता ही नहीं है फकत बीड़ी
नहीं है केवल व तम्बाकू कमीना।
तगारी उठाकर रोटियां गढ़ते मजदूर की
आत्मा का सच्चा साथी भी वह
और है उसके विशाल वक्ष का पसीना!
बीड़ी फकत शौक ही नहीं
उस खुरदरी जीभ का-
जिसके बोले हुए शब्द
सृष्टि का महाकाव्य होते हुए भी
नहीं रखते कोई अर्थ पेट के अलावा
सच! बीड़ी पीते हुए
वह नहीं होता अपने शरीर में
बल्कि होता है
धुंए के उबलते गोट का साक्षी
करता हुआ खुद का ही निर्मम
अध्ययन !