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नौकरशाह / नीलाभ
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रोज़ कुछ-न-कुछ हो रहा है
लेकिन कोई है उस ऊपर वाले कमरे में
जो लगातार-लगातार सो रहा है
सोने के लिए कुम्भकर्ण विख्यात है
पर वह भी इस आदमी के आगे मात है
(रचनाकाल : 1973)