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आवाज-एक / कमलेश्वर साहू

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एक दिन एक मीठी आवाज
कुछ सहमी सी
कुछ थरथराती सी
पूछती है मुझसे
मेरे फोन पर-
क्या तुम मुझे पहचानते हो ?
पहचानता था मैं
उस आवाज को
विगत बीस वर्षों का
फासला तय कर पहंुची थी मुझ तक
मुझे चौकाती
उस आवाज का रंग गुलाबी था
गुलाबी रंग में सांवला चेहरा
सांवले चेहरे पर दूध सी निर्मल हंसी थी
सफेद निर्दोष अबोध
और उस हंसी में कोई जादू था
वह इकलौती आवाज थी दुनिया की
जिसे पहचानता था मैं
और जिसमें घुल जाने का
स्वप्न देखा करता था कभी
मैंने कहा नहीं
मैं पहचानता हूं तुम्हें
मैंने यह भी नहीं बताया
तुम वही आवाज हो
जो बैठी हुई है मेरी आत्मा में
विगत कई वर्षों से
किसी नटखट और शरारती बच्चे के समान
अपनी तमाम मासूमियत और भोलेपन के साथ
मुझे तंग करती
पूछती-
क्या तुम मुझे पहचानते हो ! ?