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ईमानदारी / दयानंद चेंगी
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:16, 7 जून 2012 का अवतरण
दिन गये ईमानदारी करते
जिन्दगी बीती दुख उठाते
बचपन, जवानी और बुढ़ापा
एक लंबी उमर
मगर बेईमानों के परिवेश में
बेचारी जिन्दगी
ईमानदारी का रोना रोते-रोते
खो गयी
मिट गयी।
सुबह के तारे की तरह ऐसे वक्त भी आये
कि हमने ईमानदारी को झटक दिया
बिक जाना चाहा बेईमान के हाथों मगर
कोई उत्स
कोई अतीत
कोई सच्चाई
बार-बार हमें सावधान करते रहे
कि जिन्दगी सस्ती नहीं होती
हम मान गये इन बातों को
और ऐसे ही फक्कड़पन में
ईमानदारी का गीत गाते रहे
बचपन, जवानी और बुढ़ापा
एक लंबी उमर
कब खत्म हो गयी पता न चला
खैर
सुबह के तारे को डूबना ही तो होता है