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अफ़वाह / अरविन्द श्रीवास्तव
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मैंने धरती पर सेंधमारी की
और स्वांग रचा विलाप का
मैंने जिन-जिन से नमक उधार लिया
वे सभी रकाब बने थे मेरे लिए
मैंने लड़की के बालों को छुआ
और बदले में काली घटा की वसीयत लिख दी
मैंने चुम्बन लिया जिस स्त्री का
उसे चाँद तोहफ़े में दिया
भरोसे के क़ाबिल नहीं था मैं
बावजूद इसके
मेरे अंदर एक हृदय होने की अफ़वाह
ज़ोर-शोर से थी ।