भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अलसाया पड़ा रहता था मैं उनके बिस्तर पर / कंस्तांतिन कवाफ़ी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:11, 20 जून 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कंस्तांतिन कवाफ़ी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुख देने वाले उस घर में जब भी घुसता था मैं
नहीं रुकता था ठीक सामने वाले उन कमरों में
जहाँ निभाया जाता है बस कुछ प्रेम का शिष्टाचार
और किया जाता है सबसे बड़ा नम्र-सभ्य व्यवहार

गुप्त कमरों में जा घुसता था तब मैं अक्सर
अलसाया पड़ा रहता था मैं उनके बिस्तर पर
जिन पर निपटाती थीं वे ग्राहकों को अक्सर

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय