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जुगनू / मुकुटधर पांडेय
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अन्धकार में दीप जलाकर,
किसकी खोज किया करते हो
तुम खद्योत क्षुद्र हो
फिर भी क्यों ऐसा दम भरते हो
तम के ये नक्षत्र आजकल
घूम रहे हैं उसके कारण
उसका पता कहाँ है किसको
होगा यह रहस्य उद्घाटन
प्रातःकाल पवन लाती है
उसका कुछ सन्देश
मूल प्रकृति को ही कह जाती
है उसका सन्देश
क्षण-भर में तब जड़ में
हो जाता चैतन्य विकास
वृक्षों पर विकसित फूलों को
होता हास-विलास
सरस्वती, 1920 में प्रकाशित