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अबला / मल्लिका मुखर्जी

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नारी
चाहे कितना भी पढ़ ले,
चाहे जितना
आगे बढ़ ले,
सफलता की
कितनी भी सीढ़ियां चढ़ ले,
पर कभी नहीं बन सकती
कठोर
क्यों कि
उसके सीने में धड़कता है
एक दिल कमजोर !
 
वह समझ नहीं पाती
जीवन का सही गणित ।
देते वक्त
दो और दो पाँच बन जाती है
और
लेते वक्त
दो और दो तीन ही रह जाती है !
तभी तो
कितनी भी बहादुर बने वह,
अबला ही कहलाती है !