भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपलक रूप निहारूँ / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:48, 30 जुलाई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=अरी ओ करुणा प्रभाम...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अपलक रूप निहारूँ
तन-मन कहाँ रह गये?
चेतन तुझ पर वारूँ,
अपलक रूप निहारूँ!
अनझिप नैन, अवाक् गिरा
हिय अनुद्विग्न, आविष्ट चेतना
पुलक-भरा गति-मुग्ध करों से
मैं आरती उतारूँ।
अपलक रूप निहारूँ।
प्नोम् पेञ् (कम्बुजिया), 2 नवम्बर, 1957