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एक मंगलाचरण / अज्ञेय
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भावों का अनन्त क्षीरोदधि शब्द-शेष फैले सहस्र-फण,
एक अर्थ से तुम हो अच्युत, मुझ को भी दे दो करुणा-कण!
दिल्ली (बस में), 19 सितम्बर, 1954