भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक मंगलाचरण / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:37, 8 अगस्त 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भावों का अनन्त क्षीरोदधि शब्द-शेष फैले सहस्र-फण,
एक अर्थ से तुम हो अच्युत, मुझ को भी दे दो करुणा-कण!

दिल्ली (बस में), 19 सितम्बर, 1954