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पगडंडी / अज्ञेय
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यह पगडंडी चली लजीली
इधर-उधर, अटपटी चाल से नीचे को, पर
वहाँ पहुँच कर घाटी में-खिलखिला उठी।
कुसुमित उपत्यका।
अल्मोड़ा, जून, 1958