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सप्ताह की कविता
शीर्षक : वतन का गीत रचनाकार: गोरख पाण्डेय
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हमारे वतन की नई ज़िन्दगी हो नई ज़िन्दगी इक मुकम्मिल ख़ुशी हो नया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें हों मुहब्बत की कोई नई रागिनी हो न हो कोई राजा न हो रंक कोई सभी हों बराबर सभी आदमी हों न ही हथकड़ी कोई फ़सलों को डाले हमारे दिलों की न सौदागरी हो ज़ुबानों पे पाबन्दियाँ हों न कोई निगाहों में अपनी नई रोशनी हो न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन न ही कोई भी क़ायदा हिटलरी हो सभी होंठ आज़ाद हों मयक़दे में कि गंगो-जमन जैसी दरियादिली हो नये फ़ैसले हों नई कोशिशें हों नयी मंज़िलों की कशिश भी नई हो