भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नन्दा देवी-5 / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:19, 9 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=पहले मैं सन्नाटा ब...' के साथ नया पन्ना बनाया)
समस्या बूढ़ी हड्डियों की नहीं
बूढ़े स्नायु-जाल की है।
हड्डियाँ चटक जाएँ तो जाएँ
मगर चलते-चलते;
देह जब गिरे तो गिरे
अपनी गति से
भीतर ही भीतर गलते-गलते।
कैसे यह स्नायु-जाल उसे चलाता जाये
आयु के पल-पल ढलते-ढलते!
तुम्ही, पर तुम्हीं पर, तुम्हीं पर
टिके रहें थिर नयन-आत्मा के दिये-
अन्त तक जलते-जलते!
सितम्बर, 1972