भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ास आम / लालित्य ललित
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:35, 24 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लालित्य ललित |संग्रह=चूल्हा उदास ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आम मीठा है
एक खाया
मन को भाया
दो खाए
जी सा आए
तीन खाए
खूब हर्षाए
चार-पांच खाए
भईया बहुत पछताएं
कर ली तौबा-तौबा
हमने आम से
आमोख़ास ने भी आम से
महंगा है आम
जो ना खाए वो पछताएं
जो खा लें वो भी पछताएं